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लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :235
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :978-81-8143-985

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औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये


1. आज से सत्रह वर्ष पहले बांग्ला संसद शब्दकोश के बारे में लिखा था। उस शब्दकोश में पुरुष शब्द का अर्थ है-मनुष्य! लेकिन नारी शब्द का अर्थ और कुछ भले हो, मनुष्य नहीं है। सत्रह वर्ष पहले, बहुतेरे लोगों की भौंहें तन गयी थीं। बहुतेरे लोग शब्दकोश खोलकर, अवाक् बैठे रहे, अपनी ही आँखों पर उन लोगों को विश्वास नहीं हुआ। लेकिन इस बात पर क्या कोई विश्वास करेगा कि अभी भी शब्दकोश में उस शब्द का अर्थ अपरिवर्तित है?

2. पुरुष शब्द को मैं नेतिवाचक एक शब्द मानती हूँ। पुरुषतन्त्र अगर नेतिवाचक हो तो पुरुष क्यों नहीं होगा? यह जो हज़ारों-हज़ार वर्षों से पुरुषतान्त्रिक व्यवस्था टिकी हुई है, इसे तोड़ने के लिए पुरुषों ने तो कभी कोई कोशिश नहीं की। वैसे पुरुष वर्ग अगर चाहता तो इस तन्त्र को निर्मूल कर सकता था। साम्य के लिए, समता के लिए, वे लोग पुरुषतन्त्र को चकनाचूर करके निश्चिन्ह कर सकते थे। लेकिन उन लोगों ने नहीं किया।

'पुरुष'-यह शब्द मैं इन समानार्थी शब्दों के तौर पर इस्तेमाल करना चाहती हूँ-अविवेकी, अनुदार, अकृतज्ञ, स्वार्थी, स्वार्थान्ध, लोभी, लोलुप, हीनमन्य ईर्ष्यालु ! उन लोगों को मैं 'पुरुष' कह कर गाली देना चाहती हूँ, मैं उन लड़कों और लड़कियों को भी गाली देना चाहती हूँ जो चरित्र के इन विशेषणों के अधिकारी हैं। यह कह कर गाली देना चाहती हूँ,-छिः छिः तुम इतने कुत्सित हो, इतने कंजूस, इतने सड़े? तुम इतने सड़े पुरुष कैसे हो सके?

3. अभी भी पुरुष कोलकाता की शिक्षित, स्वनिर्भर औरतों के कर्ता हैं। औरतें पार्टियों में शामिल होती हैं, शराब पीती हैं, नाचती हैं और कहती हैं-'भई, मेरे कर्ता ने तो काफ़ी आज़ादी दे रखी है। इतनी आज़ादी औरतों को नहीं मिलती।

मारे कृतज्ञता और स्वनिर्भरता के गर्व से उनका चेहरा चमक उठता है। मैं मन-ही-मन कहती हूँ-आज़ादी तो तेरा जन्मसिद्ध अधिकार है! तेरी चीज़ तेरे ही पास है। पुरुष देने वाला कौन होता है?

पुरुष तो जैसे औरत के सिर पर ही सवार है। औरत भी आराम से चुमकार-पुचकार कर पुरुषों को अपने सिर चढ़ने में मदद करती है। औरत के ही सिर पर सवार हो कर, पुरुष उनका सिर खाता रहता है। कीड़े की तरह कुतर-कुतर कर खाता है। कीड़े की तरह औरतों के अन्दर समा जाता है। दिमाग के बारह बजा देता है। औरत क्यों नहीं सिर झटक कर, पुरुषों को अपने सिर से उतार नहीं देती? वह साफ-साफ सुना सकती है-'देखो, अगल में रहो, पीछे रहो, लेकिन सिर पर चढ़ कर मत बैठो।' लेकिन क्या... ऐसा करती है?

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    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

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